And I am hopping on to the other side for sure, for a visit, eh! Blogging might be sporadic but will be straight from the greener pastures for next few weeks. Yipeeeeeeeee!
image: google
December 18, 2009
December 09, 2009
Wishlist
Its the wishlist season, and I was wondering what would a girl's wishlist consist of?
Jewelery, handbags or clothes?
For a girl in India, a wish list could look like this:
image: google.
Jewelery, handbags or clothes?
For a girl in India, a wish list could look like this:
- Getting to see her side of the family when she wants. Asking for permission to see parents defies all logic.
- Getting to wear what she feels like.
- Not considered a possession, of her father, brothers and husband but a person.
- See her friends, or actually have some friends.
- Not be the last one to eat. Really, why females, in many so called educated and modern families, are expected to eat only after the male members of the family?
- Have equal say in financial decisions.Whether she earns or not, she is a contributor to the family.
- Doing what she wants for her parents.
- A home that is her own, not her mayka (mom's) or sasural (inlaws)
- People around her realize that she is an individual who has hopes, wishes, desires, interests, hobbies and cooking is not necessarily one of them.
- Future generation girls need not wish for any of these, hopefully they would simply have these.
image: google.
December 03, 2009
Ajab Scooter Ki Ghazab Kahani
Apologies to my readers who can not read Hindi. This post could not have met justice in a language other than my mother tongue. If you can talk in Hindi and fully understand it , then grab a friend who can read this to you. Please do not use the google translator , it will just kill the spirit!
घर के बहार खड़ा बेचारा ग्रे स्कूटर गर्मी की लू में
परेशान प्यास से तिलमिला रहा था लेकिन टंकी
भरने की उम्मीद भी अब तो मर ही गयी थी.
पेट्रोल कब नसीब होगा यह तो अब ऊपर वाला ही
जानता है. "मिस्टर तो चले गए हैं दक्षिण भारत
अपनी कोई ट्रेनिंग अटेंड करने और मिस्सेस के
चेहरे से तो जैसे मुस्कान ऐसे गायब हो गयी जैसे
की पंचर टायर में से हवा. अब क्या बताऊँ आपको
, बड़े ही प्यारे हैं हमारे मिस्टर और मिस्सेस. याद
आते हैं मुझे वो दिन जब मिस्टर मुझे बड़ी स्टाइल
से स्टार्ट करते थे और मिस्सेस शर्माते हुए पीछे की
सीट पैर बैठती और फिर मीठी सी मुस्कान देते
हुए अपना एक हाथ मिस्टर के कंधे पर रख देती,
मिस्टर की ख़ुशी का तो ठिकाना ही न रहता और
वो पूछते "चलूँ क्या" . और फिर मैं हिचकोले खाता
, हवा से बातें करता हुआ चलता जाता, क्या दिन
थे वो !! कसम से दो हफ्ते हो गए किसी ने धुल
तक साफ़ नहीं की मेरी ...हाय ! विरह की घड़ियाँ तो
मिस्सेस गिन रही हैं लेकिन धुप में खड़ा खड़ा जल
मैं रहा हूँ . वैसे तो जब मिस्टर अकेले ही मुझ पर
सवारी करते हैं तो मुझ गरीब पर कुछ ख़ास ध्यान
नहीं देते , वो तो बस जिस दिन मिस्सेस से मिलन
होने वाला हो , वो जिसे कहते हैं न डेट, जब डेट हो
तब उनकी किस्मत के साथ साथ मेरी भी चांदी हो
जाती थी . मुझे खूब चमकाते हैं , डिक्की की साफ़
सफाई भी हो जाती है लेकिन मिस्सेस से मिलने
की उत्सुकता में पेट्रोल भरवाना भूल जाते हैं , पर
मिस्सेस बहुत ही पर्टिकुलर हैं भाई , वो तो बैठने से
पहले ही पूछती हैं "पेट्रोल भरवाया" और फिर दोनों
अपना कोई भी काम करने से पहले मेरा पेट पूजन
करवा देते हैं. मिस्सेस तो मेरा बहुत ही ख्याल
रखती हैं , जब भी कहीं पार्किंग करनी हो तो उनके
कहे अनुसार मुझे हमेशा पेड़ की छाया में पार्क
कीया जाता है जिससे की मेरा रंग न हल्का पड़
जाये. कभी भी दावा दारू की ज़रुरत हो तो मिस्सेस
पहले मुझे मकैनिक के पास ले जाने को कहती हैं
और उसके बाद ही अपनी डेट की सोचती हैं .
लेकिन उनकी मुस्कान तो मिस्टर की मौजूदगी में
ही दिखाई देती है , इतना ख़याल जो रखते हैं
मिस्टर उनका . मैं तो बस येही सोच सोच तड़प रहा
हूँ की कब यह हसीन जोड़ा मुझ पर सवार हो,
हिचकोले खाता अपनी मुस्कुराहटों का लेन देन
करेगा और कब मेरी पेट्रोल को तरसती टंकी अपनी
प्यास बुझा पायेगी और मैं तेज़ रफ़्तार से दौड़ता
हुआ दोबारा इन सड़कों पर अपने पहिये चलाऊंगा .
यहाँ खड़ा खड़ा धुल मिटटी खा रहा हूँ अब तो
लगता है दमे का मरीज़ ही ना बन जाऊं . अच्छा
दोस्तों तुम तो निकलो अपने अपने सफ़र पर और
कोई दुःख सुख बाटने वाला ना मिले तो मैं तो यहीं
खड़ा हूँ ना जाने कब तक, आ जाना भैया .
अलविदा !"
घर के बहार खड़ा बेचारा ग्रे स्कूटर गर्मी की लू में
परेशान प्यास से तिलमिला रहा था लेकिन टंकी
भरने की उम्मीद भी अब तो मर ही गयी थी.
पेट्रोल कब नसीब होगा यह तो अब ऊपर वाला ही
जानता है. "मिस्टर तो चले गए हैं दक्षिण भारत
अपनी कोई ट्रेनिंग अटेंड करने और मिस्सेस के
चेहरे से तो जैसे मुस्कान ऐसे गायब हो गयी जैसे
की पंचर टायर में से हवा. अब क्या बताऊँ आपको
, बड़े ही प्यारे हैं हमारे मिस्टर और मिस्सेस. याद
आते हैं मुझे वो दिन जब मिस्टर मुझे बड़ी स्टाइल
से स्टार्ट करते थे और मिस्सेस शर्माते हुए पीछे की
सीट पैर बैठती और फिर मीठी सी मुस्कान देते
हुए अपना एक हाथ मिस्टर के कंधे पर रख देती,
मिस्टर की ख़ुशी का तो ठिकाना ही न रहता और
वो पूछते "चलूँ क्या" . और फिर मैं हिचकोले खाता
, हवा से बातें करता हुआ चलता जाता, क्या दिन
थे वो !! कसम से दो हफ्ते हो गए किसी ने धुल
तक साफ़ नहीं की मेरी ...हाय ! विरह की घड़ियाँ तो
मिस्सेस गिन रही हैं लेकिन धुप में खड़ा खड़ा जल
मैं रहा हूँ . वैसे तो जब मिस्टर अकेले ही मुझ पर
सवारी करते हैं तो मुझ गरीब पर कुछ ख़ास ध्यान
नहीं देते , वो तो बस जिस दिन मिस्सेस से मिलन
होने वाला हो , वो जिसे कहते हैं न डेट, जब डेट हो
तब उनकी किस्मत के साथ साथ मेरी भी चांदी हो
जाती थी . मुझे खूब चमकाते हैं , डिक्की की साफ़
सफाई भी हो जाती है लेकिन मिस्सेस से मिलने
की उत्सुकता में पेट्रोल भरवाना भूल जाते हैं , पर
मिस्सेस बहुत ही पर्टिकुलर हैं भाई , वो तो बैठने से
पहले ही पूछती हैं "पेट्रोल भरवाया" और फिर दोनों
अपना कोई भी काम करने से पहले मेरा पेट पूजन
करवा देते हैं. मिस्सेस तो मेरा बहुत ही ख्याल
रखती हैं , जब भी कहीं पार्किंग करनी हो तो उनके
कहे अनुसार मुझे हमेशा पेड़ की छाया में पार्क
कीया जाता है जिससे की मेरा रंग न हल्का पड़
जाये. कभी भी दावा दारू की ज़रुरत हो तो मिस्सेस
पहले मुझे मकैनिक के पास ले जाने को कहती हैं
और उसके बाद ही अपनी डेट की सोचती हैं .
लेकिन उनकी मुस्कान तो मिस्टर की मौजूदगी में
ही दिखाई देती है , इतना ख़याल जो रखते हैं
मिस्टर उनका . मैं तो बस येही सोच सोच तड़प रहा
हूँ की कब यह हसीन जोड़ा मुझ पर सवार हो,
हिचकोले खाता अपनी मुस्कुराहटों का लेन देन
करेगा और कब मेरी पेट्रोल को तरसती टंकी अपनी
प्यास बुझा पायेगी और मैं तेज़ रफ़्तार से दौड़ता
हुआ दोबारा इन सड़कों पर अपने पहिये चलाऊंगा .
यहाँ खड़ा खड़ा धुल मिटटी खा रहा हूँ अब तो
लगता है दमे का मरीज़ ही ना बन जाऊं . अच्छा
दोस्तों तुम तो निकलो अपने अपने सफ़र पर और
कोई दुःख सुख बाटने वाला ना मिले तो मैं तो यहीं
खड़ा हूँ ना जाने कब तक, आ जाना भैया .
अलविदा !"
December 01, 2009
My heart lies here
When I was a little girl I would play ghar- ghar (house) with my friends, pretending the whole park to be our house with imaginary lines dividing the living room( the drawing room as its called in India), the dining room and the bedrooms. Was it my dream home, No. Somehow in real life I never thought of the kind of house I would live in. There was simply no plan or an expectation. I guess there was this contentment in me which never made me wish for things.
Yesterday we celebrated our home's 4th anniversary. The day we moved in, it was cold and rainy and the moment I stepped in, as my socks were wet too, I slipped on the kitchen floor with Saumya in my arms. The house was already a stranger to me but now it became a hostile stranger. Husband went away for a business trip within four days of moving. I was alone with a baby, in a house which seemed like someone else's. Looking out the window, the bare street and lawns covered in snow, not knowing who lives next door, everything felt cold and I felt like an alien on earth. But with each passing day, reaching little milestones like Ssaumya's first birthday, her first words, her first step, first party, first movie night, our laughters, our tears and many more such things through which life happens, we made this house our own, our home.
They say home is where the heart is and my heart surely is with our home. A home whose walls might still be bare but they stand proud and strong. Rooms might lack appropriate furniture but we don't find the same comfort anywhere else. It may not be clean all the time but this is the place where we find our reality. Its a place we call our own, a place we fill with our love, laughter, cries, joys, hopes and aspirations. That little girl of yesteryear's is not playing house anymore as we have a home and its real.
image courtesy : google images.
Yesterday we celebrated our home's 4th anniversary. The day we moved in, it was cold and rainy and the moment I stepped in, as my socks were wet too, I slipped on the kitchen floor with Saumya in my arms. The house was already a stranger to me but now it became a hostile stranger. Husband went away for a business trip within four days of moving. I was alone with a baby, in a house which seemed like someone else's. Looking out the window, the bare street and lawns covered in snow, not knowing who lives next door, everything felt cold and I felt like an alien on earth. But with each passing day, reaching little milestones like Ssaumya's first birthday, her first words, her first step, first party, first movie night, our laughters, our tears and many more such things through which life happens, we made this house our own, our home.
They say home is where the heart is and my heart surely is with our home. A home whose walls might still be bare but they stand proud and strong. Rooms might lack appropriate furniture but we don't find the same comfort anywhere else. It may not be clean all the time but this is the place where we find our reality. Its a place we call our own, a place we fill with our love, laughter, cries, joys, hopes and aspirations. That little girl of yesteryear's is not playing house anymore as we have a home and its real.
image courtesy : google images.
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